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Saturday 11 July 2020

पाक्षिक सुझाव (1 से 15 जुलाई के बीच तकनीकी सलाह)


धान - सीधी बोनी पद्धति

1          कम से मध्यम अवधि की किस्मों का चयन करें जैसे- आई आर. 64, एम. टी. यू. 1010, पी. एस. 5,  पी. एस. 7, जे. आर. 206 इत्यादि ।
2.         बीजोपचार - ट्राइसायक्लाजोल 1.5 ग्रा/ली. पानी में धोल बनाकर करें।
3.         बीज दर 30 कि. ग्रा. / एकड
4.         बोनी फर्टीलाइजर कम सीड ड्रिल से करें।
5.         पोषक तत्वों का निर्धारण मृदा परीक्षण आधारित अनुसंशा से करें अथवा औसत नाइट्रोजन 80-100 कि. ग्रा. / हे.फास्फोरस 50-60 किग्रा/हे. एवं पोटाश 30-40 किग्रा/हे. प्रयोग करें।
6.         आवश्यकतानुसार तीन वर्ष में एक बार जिंकसल्फेट 25 किग्रा/हे. प्रयोग करें।
7. बोनी के समय फास्फोरसपोटाश एवं जिंकसल्फेट की संपूर्ण पात्रा आधार खाद के रूप में प्रयोग करें। नाइट्रोजन की 30  मात्रा बोनी के समयशेष मात्रा को दो भागों में बाटकर कल्ले निकलने की अवस्था में एवं पुष्पन अवस्था में प्रयोग करें।
8.         खरपतवार प्रबंधन हेतु बोनी के 20-25 दिन की अवस्था में बिसपायरीबेक सोडियम साल्ट की 100 मिलि/एकड़ व्यापारिक पदार्थ के साथ में मिश्रित दवा मेटसल्फ्यूरान मेथिल $ क्लोरीम्यूरान एथिल की व्यापारिक पदार्थ 8 ग्रा/एकड़ का छिड़काव करें। खरपतवार नाशक दवा के छिड़काव के दौरान मृदा में नमी उपस्थित होना चाहिए।
9.         खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव हेतु फ्लैट फैन या फ्लड जेट नोजन का प्रयोग करें।
10.       लेई पद्धति से बोने हेतु अंकुरित बीजों की बोनी ड्रम सीडर से 30 किग्रा/एकड़ बीज दर का प्रयोग करें।
धान रोपा पद्धति-
1.         धान की रोपण़ी  तैयार करेंरोपण़ी 1 मीटर चैड़ी एवं सुविधानुसार लंबाई की तैयार करेंदो पट्टी के बीच 30 से. मी. गहरी नालियाँ दें जिससे अधिक वर्षा होने पर पानी खेत में एकत्रित न हो एवं आवश्यकता पड़ने पर इन नालियाँ में बैठकर रोपण़ी में खरपतवारों की निदाई सुगमता से की जा सके। रोपण़ी में बेड शय्या में अच्छी पकी गोबर की खाद का प्रयोग करें जिससे रोपाई के दौरान रोपा उखाडने के दौरान जडों को क्षति न पहुँचे।
2.         बीजोपचार पूर्वानुसार ही करें।
3.         सामान्य तौर पर कुछ रोपाई किये जाने वाले क्षेत्र के 20ः क्षेत्र में रोपण़ी हेतु स्थान की आवश्यकता होती है।
4.         प्रयास करें कि धान के रोपा की कम उम्र में रोपाई का कार्य पूरा करलें (15-16 दिन से 25-26 दिन के अंदर)।
5.         पौध अंतरण-  संकर धान में 22 से. मी. कतार से कतार एवं 10 से. मी. पौध से पौध एवं सामान्य किस्म में कतार से कतार 20 से. मी. एवं पौध से पौध 7-8 से. मी.का अंतरण रखें।
6.         रोपा वाले धान में खरपतवार प्रबंधन हेतु बेनसल्फ्यूरान $ प्रेटिलाक्लोर की 4 किग्रा ़ व्यापारिक पदार्थ को प्रति एकड़ की दर से रोपाई के तीन दिन के अंदर प्रयोग करें।
सोयाबीन
1.         बीजोपचार - मैन्कोजेब $ मेटालेक्सिल 3 ग्राम/किग्रा बीज अथवा
           थायमेथाक्साम 30ः एफ. एस. /10 मिलि/किग्रा बीज
                            एवं
राइजोबियम एवं  पी. एस. बी. की (प्रत्येक तरल की 10 मिलि प्रति किग्रा बीज)
2.         बीजदर - छोटे दाने वाली किस्मों हेतु 25 किग्रा/एकड़ एवं बडे़ दाने वाली किस्मों हेतु 30 किग्रा/एकड़
3.         बोने की विधि - रेज्ड बेड प्लाटंर से कूड़ नाली पद्धति से बोनी करें।
4.         अंतरण - कतार से कतार 45 से. मी. तथा पौध से पौध 7.5 से. मी.।
5.         खरपतवार प्रबंधन - प्रोपाक्विजाफाप $ इमेजाथापिर 800 मिलि व्यापारिक पदार्थ को प्रति एकड़ की दर से फसल की बोनी के 20-25 दिन में करें।
मूँग - उड़द
1.        बीजोपचार - सोयाबीन जैसे ही करें।
2.        बीजदर - 6 किग्रा/एकड़
3.        बोनी की विधि - रेज्ड बेड प्लांटर से करें। कतार से कतार की दूरी 30सेमी एवं पौध से पौध की दूरी 7.5 से. मी.
4.        खरपतवार प्रबंधन - इमेजाथापिर की 400 मिलि व्यापारिक पदार्थ प्रति एकड़ की दर से बोनी के 20-25 दिन में छिड़काव करें।
अरहर
1.        बीजोपचार - सोयाबीन जैसे ही करें
2.         बीजदर   -  कम अवधि की किस्मों हेतु 6 किग्रा/एकड़ , लंबी अवधि वाली किस्मों हेतु 4 किग्रा/एकड़
3.         अंतरण - कम अवधि में कतार से कतार की दूरी 45 से. मी. एवं पौध से पौध की दूरी 15 से. मी.
     लंबी अवधि हेतु कतार से कतार की दूर ं75 से. मी. एवं पौध से पौध की दूरी 25 से. मी.
4.                    बोनी की विधि - रेज्ड बेड प्लांटर से करें।
5.        ट्राइकोडर्मा विरडी की 1 ली /एकड़ मात्रा गोबर की खाद में जुताई के उपरांत मिलाकर भूमि उपचार करने से बोनी करें ताकि उकठा रोग का प्रबंधन हो सके। अरहर की खेती मुख्य खेत के साथ मेड़ों पर अवश्य करें
6.        खरपतवार प्रबंधन - इमेजाथापिर की 400 मि.ली. व्यापारिक पदार्थ को प्रति एकड़ की दर से बोनी के 25-25 दिन बाद छिड़काव करें।
            अंतर्वर्तीय फसलें - अरहर एवं उड़द/मूँग 2: 6
             अरहर एवं  सोयाबीन 2: 4
              अरहर एवं मक्का 1: 1
तिल -
1.        बीजोपचार - मैन्कोजेब $ मेटालेक्सिल 3 ग्रा. / किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करें।
2.        बीजदर -  2 किग्रा बीज/एकड़ , रेत में मिलाकर बोनी करने से खेत घना नही होगा। पौधे अधिक सघन होने पर उखड़वाकर पौध संख्या 30 से. मी.   10 से. मी. अंतरण में रखें।
3.        जल निकास का समुचित प्रबंधन करें।
4.        उर्वरक मृदा परीक्षण आधारित अनुसंशा करें। अथवा औसत रूप से 40: 30: 20 किग्रा नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश का प्रति हेकी दर से प्रयोग करें।
5.        तिलहनी फसल होने के कारण सल्फर 10 किग्रा/एकड़ बोनी के समय प्रयोग करें।
6.        फास्फोरस , पोटाश एवं सल्फर की संपूर्ण मात्रा एवं नाइट्रोजन की एक तिहाई भाग बोनी के समय प्रयोग करें । शेष नाइट्रोजन बोनी के 30 एवं 50 दिन की अवस्था में क्रमशः शाखाएँ बनते समय एवं पुष्पन के दौरान करें।
7.        खरपतवार प्रबंधन - तिल में खरपतवार प्रबंधन हेतु भूमि की तैयारी अच्छे से करें। वारिश शुरू होने पर 10 दिन के अंतराल में तीन बार जुताई करें जिससे खरपतवारों की संख्या में कमी आएगी। फसल की बोनी के तीन दिन के अंदर पेंडिमेथलीन ;38ःद्ध की 700 मिली/एकड़ (व्यावसायिक पदार्थ) की दर से छिड़काव करें । आवश्यकता पड़ने पर फसल की बोनी के 25-30 दिन में एक बार हाथ से निंदाई करें।
कोदो 
1. बीजोपचार - कार्बेन्डाजिम $ मैन्कोजेब 2.5 ग्रा/किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करें।
2. बीज दर - 4 किग्रा / एकड़
3. अंतरण - कतार से कतार की दूरी 20 से. मी. एवं पौध से पौध की दूरी  5 से. मी.।
4. पोषक तत्व प्रबंधन - 40: 30: 20 किग्रा. नाइट्रोजन , फास्फोरसपोटाश प्रति हेकी दर से अथवा मृदा परीक्षण के आधार पर करें।
5. खरपतवार प्रबंधन - खेत की तैयारी अच्छी तरह से करेंमानसून आने के बाद 10 दिन के अंतराल पर तीन जुताई करें एवं बोनी के  25 - 30 दिन की अवस्था में एक बार हाथ से निंदाई अवश्य करायें।
फसल सुरक्षा -
1.         सोयाबीन , मूँगउर्द व सब्जियों में रस चूसने वाले कीट एवं इससे फैलने वाले पीला रोग के प्रबन्धन के लिए थायोमेथोक्जाम 3%  एफ.एस. की 10 मिली/किग्रा. बीज या इमिडाक्लोप्रिड 48%  एफ. एस. की 1.25 मिली/किग्रा. बीज को उपचारित करें।
2.         बैगन में तना एवं फल बेधक कीट एवं टमाटर में फलबेधक कीट के प्रबन्धन के लिए जैवकीटनाशी बी. टी. की 1000 ग्राम मात्रा/हेछिडकाव करें।
3.         पर्णकुचंन बीमारी जो टमाटर एवं मिर्च में ज्यादा होती है , की रोकथाम के लिए पौधशाला को एग्रोनेट से ढ़क कर रखें और रोपाई के समय इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस. एल. की 1 मिली  मात्रा , 2 ली. पानी में मिलाकर रोपाई के 1 घंटे पूर्व जड़ शोधन करें।
4.         जिस खेत में उकठा बीमारी का प्रकोप हो तो वहाँ पर अंतिम जुताई के समय 4-5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पकी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट के साथ डाले।
5.         सब्जियों में शुरू की अवस्था में नीम तेल (1500 पी. पी. एम.) की  50-60 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें।
6.         सोयाबीन में बुवाई के 20-25 दिन बाद यलो स्टिकी टैप (पीली चिपकने वाली पट्टी) 20 की संख्या में प्रति हेमें प्रयोग करने से पीला रोग का प्रकोप कम होता है।
7.         दलहनी एवं तिलहनी फसलों में 2-3 पत्तियों की अवस्था पर थायोमेथोक्जाम + लैम्बडा सायहलोथ्रिन की मिश्रित दवा की 250 - 300 मिली मात्रा प्रति हेकी दर से छिडकाव करें।
8.         फलों में लगने वाले कीटों के प्रबन्धन के लिए थायोमेथाक्जाम + लैम्बडासायहलोथ्रिन की मिश्रित दवा 10 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
9.         मक्के में लगने वाले फाल आर्मीवर्म के प्रबंधन के लिए स्पानेटोराम 11.7: एस. सी. की 420- 470 मिली या थायोमेथेक्जाम 12.5%+ लैम्बडासायहलोथ्र्रिन 9.5% की मिश्रित दवा 250 मिली/हेकी दर से छिड़़काव करें।
उद्यानिकी -
1.        सब्जी की रोपणी  तैयार करने के लिए सतह से लगभग 6 से 9 इंच ऊँची (रेज्ड बेड) भूमि का सोलराइजेशनपन्नी से ढंक कर करें।  सब्जियों के खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। यह समय आम और अमरूद के पौधों के रोपण के लिए उपयुक्त है। 
2.        फलों के पौधों में खाद एवं उर्वरकों की मात्रा पौधों की उम्र के अनुसार डालें।
3.        टमाटरबैगनमिर्च एवं अगेती फूल गोभी की पौध की खेत में रोपाई कर हल्की सी सिचाईं करें।
4.        खेत में प्रारभिंक उर्वरक डाल कर कद्दू वर्गीय सब्जियों की बुवाई करें।
पशुपालन-
1.         हरे चारे हेतु चरीज्वारमक्का बोएं।
2.        बकरी वर्ग में पी. पी. आर. का टीका करण करें।
3.        पशुबाडे की मरम्मत करें।
अन्य 
1.       विषैले  जन्तु के काटने पर प्राथमिक उपचार के फौरन बाद डाक्टर के पास जाएँ।
2.      पानी को उबाल कर , छान कर ठंडा करके पिएँ। छानने के लिए दो परतों वाले कपडे का प्रयोग करें।
3.      दही एवं खमीरयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें।
4.      वर्षा से बचने के लिए पेड़ के नीचे शरण ना लें।