देरी से बोई गई धान
हेतु :
- आवश्यकता पड़ने पर
वराह काम होने पर सिंचाई की उचित व्यवस्था करें ।
- धान में सफेद व
भूरे रंग की मक्खी दिखाई देने पर फिप्रोनिल 5% की 300 मिली मात्रा प्रति एकड की दर से छिडकाव करें .
- धान में अगर
पुरानी पत्ती ऊपर से कत्थई रंग ले कर सूख रही हो तो 0:0:50 एन.पी.के. खाद का छिड़काव 1 किलो प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी मे घोल कर करें अथवा 15 किलो म्युरेट
ऑफ पोटाश का भुरकाव करे।
- धान में तना बेधक
कीट एवं दीमक के प्रबंधन के लिए फिप्रोनिल 0.3 जी. आर. या कार्टेप
हाइड्रोक्लोराइड 4 जी. की 10 किग्रा/एकड.
प्रयोग करें।
- धान की फसल में
तना बेधक, पत्ती लपेट, चिड्डा एवं
दीमक कीट की समस्या आने पर इसके नियत्रंण के लिए थायोमेथोक्जाम +
क्लोरेन्ट्रानिलोप्रोल की मिश्रित दवा की 1 किग्रा
मात्रा को 6 किग्रा रेत या यूरिया में मिलाकर प्रति एकड
की दर से भुरकाव करें । कीटों के उचित नियंत्रण
हेतु दवाओं के प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए।
- धान में अगर
पत्तियाँ ऊपर से सूख रहीं है और फिर पत्ती के
दोनों किनारों में पहले इसी लक्षण को प्रदर्शित करते हुए पूरी पत्ती बाद में
पीली सफेद हो जाये तो यह जीवाणु पत्ती झुलसा रोग है। इसके निंयत्रण हेतु खेत
का पानी निकाल दें एवं यूरिया खाद का प्रयोग अभी न करें, साथ ही कापर आक्सीक्लोराइ 3 ग्रा/ली. एवं
स्टेप्टोसाइक्लीन 2.5 ग्रा/10 ली
को एक साथ घोल कर छिड़काव करें या कासुगामाइसिन 1.5 ग्रा/ली.
पानी की दर से छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त इस रोग के नियंत्रण हेतु 20
किलो कच्चा गोबर 100 ली. पानी में घोलकर
प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
- धान में इस समय
शीथ ब्लाइट रोग देखने को मिल रहा है यह फफूँद जनित रोग जमीन की सतह से जुड़े
पौध वाले भाग पहले गहरे भूरे धब्बों के रूप में दिखता है, एवं
धीरे-धीरे पूरे तने में फैल जाता है यह रोग अक्सर धान जब गलेथ में आनी शुरू
होती है तब आता है, इस रोग के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित
फफँदनाशी में से किसी एक का प्रयोग करें। ऐजोक्सीस्ट्रोबिन 23 प्रतिशत का 1 एम. एल. /ली. (200 एम. एल. /एकड़ ) या हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत का 2
एम. एल. /ली. (400 एम. एल. /एकड़ ) या
वैलिडामाइसिन 3 प्रतिशत का 2 एम.
एल. /ली. (400 एम. एल. /एकड़ ) या मिटोमिनोस्ट्रोबिन 20
प्रतिशत का 1 एम. एल. /ली. (200 एम. एल. /एकड़ ) की दर से प्रयोग करें।
- किसान भाइयों गत
वर्ष धान में आभासी कण्डवा रोग की अधिकता देखी गई थी जिसमें वाली में दानों
के स्थान पर गुलाबी संरचना बन कर उभर आई थी, इस रोग का प्रबंधन हमें
शुरूआत से ही करना है अर्थात जैसे ही धान ग्लेथ में आये तब प्रोपीफोनाजोल 25
प्रतिशत फफँूदनाशी 1 एम. एल./ली. (200एम. एल./एकड़) की दर से छिड़काव करें एवं जब बलिया 50 प्रतिशत फूल की अवस्था में हो तब टेबुकोनाजोल 25.9 प्रतिशत का 1.25 एम. एल./ली. (250एम. एल./एकड़) अथवा ट्राइसाइक्लाजोल 75 प्रतिशत 0.6
ग्रा./ली. (120ग्रा./एकड़) अथवा
हेक्जाकोनाजोल 5 प्रतिशत का 2 एम.
एल./ली. (400एम. एल./एकड़) की दर से प्रयोग करें।
- धान में पुरानी
पत्तियाँ अगर ऊपर से पीली भूरी हो रही हों तो यह पोटाश की कमी के लक्षण हो
सकते हैं इस दशा में 0: 0: 50, एन. पी. के. का छिड़काव 1 किलो/ 200 ली. पानी/एकड़ की दर से करें या 15
कि. म्यूरेट आफ पोटाश खाद प्रति एकड़ भुरकाव करें।
- धान की पत्तियों
के दोनों किनारे आपस में चिपके हो और पत्ती सफेद रंग की दिखे तो यह पत्ती
लपेटक कीट की समस्या है इसके निदान हेतु लेम्डासाहिलोथ्रिन + थायोमिथाक्जाम 10 एम.
एल /15 ली. पानी अथवा फिप्रोनिल 5 प्रतिशत 2 मिली./ली पानी में मिलाकर (400 एम. एल./एकड़) की दर से प्रयोग करें।
- धान के पौधों में अगर मध्य भाग सूख रहा हो और खींचने में आसानी से निकल आये तो यह पीला तना छेदक कीट की समस्या है इसके नियंत्रण हेतु फिप्रोनिल 0.6 दानेदार 04 किला/एकड़ प्रयोग करें ।
No comments:
Post a Comment